हिंसानंद
From जैनकोष
रौद्रध्यान के चार भेदों में प्रथम भेद-हिंसा में आनंद मनाना जीवों को मारने और बांधने आदि की इच्छा रखना, उनके अंगउपांगों को छेदना, संताप देना, कठोरदंड देना आदि । ऐसे कार्यों को करने वाला पुरुष अपने आपका घात पहले करता है पीछे अन्य जीवों का घात करे या न करे । क्रूरता, शस्त्रधारण, हिंसाकथाभिरति ये रौद्रध्यान के चिह्न हैं । महापुराण 21.45-49, हरिवंशपुराण - 56.19, 22