हिरण्योत्कृष्ट जन्मता क्रिया
From जैनकोष
महापुराण/38/70-310 आधानं नाम गर्भादौ संस्कारो मंत्रपूर्वक:। पत्नीमृतुमतीं स्नातां पुरस्कृत्यार्हदिज्यया।70। ...अत्रापि पूर्ववद्दानं जैनी पूजा च पूर्ववत् । इष्टबंधसमाह्वानं समाशादिश्च लक्ष्यताम् ।97। ...क्रियाग्रनिर्वृतिर्नाम परानिर्वाणमायुष:। स्वभावजनितामूर्ध्वव्रज्यामास्कनदतो मता।309।
गर्भान्वय की 53 क्रियाओं में 39वीं क्रिया हिरण्योत्कृष्ट जन्मता क्रिया है। हिरण्योत्कृष्ट जन्मता क्रिया - तीर्थंकर बालक के जन्म के छह महीने पूर्व से ही कुबेर द्वारा हिरण्य, सुवर्ण व रत्नों की वर्षा हो रही है जहाँ, तथा श्री ह्री आदि देवियाँ कर रही हैं सेवा जिसकी, ऐसा तथा शुद्ध गर्भ वाली माता के गर्भ में तीन ज्ञानों को लेकर अवतार धारण करना।217-224।
गर्भान्वय की अन्य क्रियाओं के बारे में जानने के लिये देखें संस्कार - 2.2।