GP:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 102 - अर्थ
From जैनकोष
इस प्रकार प्रवचन के सारभूत 'पंचास्तिकाय संग्रह' को विशेष-रूप से जानकर जो राग-द्वेष को छोडता है, वह दु:खों से परिमुक्त होता है ।
इस प्रकार प्रवचन के सारभूत 'पंचास्तिकाय संग्रह' को विशेष-रूप से जानकर जो राग-द्वेष को छोडता है, वह दु:खों से परिमुक्त होता है ।