GP:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 105 - अर्थ
From जैनकोष
सम्यग्दर्शन-ज्ञान से सहित, रागद्वेष से परिहीन चारित्र लब्ध-बुद्धी भव्यों के मोक्ष का मार्ग है ।
सम्यग्दर्शन-ज्ञान से सहित, रागद्वेष से परिहीन चारित्र लब्ध-बुद्धी भव्यों के मोक्ष का मार्ग है ।