GP:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 107 - अर्थ
From जैनकोष
जीव-अजीव (मूल) भाव हैं; उनके पुण्य-पाप, आस्रव, संवर, निर्जरा, बंध और मोक्ष -- ये अर्थ / पदार्थ होते हैं ।
जीव-अजीव (मूल) भाव हैं; उनके पुण्य-पाप, आस्रव, संवर, निर्जरा, बंध और मोक्ष -- ये अर्थ / पदार्थ होते हैं ।