GP:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 109.1 - तात्पर्य-वृत्ति - हिंदी
From जैनकोष
पृथ्वी, जल, वनस्पति-ये तीन स्थावर काय के योग से, सम्बन्ध से स्थावर कहलाते हैं । उन पाँच स्थावरों में से अग्नि और वायुकायिक जीव में चलन क्रिया देखकर उन्हें व्यवहार से त्रस कहा जाता है । यदि वे त्रस हैं तो क्या मन होगा? ऐसा नहीं है; मणपरिणामविरहिदा वे मन परिणाम से विहीन हैं और उसीप्रकार उन्हें एकेन्द्रिय जानना चाहिए। वे कौन हैं? वे जीव हैं ।
वहाँ यद्यपि अग्नि-वायुकायिकों के व्यवहार से चलन है; तथापि स्थावर नाम-कर्मोदय से भिन्न अनन्त ज्ञानादि गुण-समूह से अभिन्न जो आत्म-तत्त्व है, उसकी अनुभूति से रहित जीव द्वारा जो उपार्जित स्थावर नामकर्म, उसके उदय के अधीन होने के कारण निश्चय से (वे भी) स्थावर हैं, ऐसा भावार्थ है ॥११९॥