GP:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 115 - समय-व्याख्या - हिंदी
From जैनकोष
यह, पंचेन्द्रिय जीवों के प्रकार की सूचना है ।
स्पर्शनेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय और श्रोत्रेन्द्रिय के आवरण के क्षयोपशम के कारण, मन के आवरण का उदय होने से स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण और शब्द को जानने वाले जीव मन-रहित पंचेन्द्रिय-जीव हैं, कतिपय (पंचेन्द्रिय जीव) तो, उन्हें मन के आवरण का भी क्षयोपशम होने से, मनसहित (पंचेन्द्रिय जीव) होते हैं । उनमें देव, मनुष्य और नारकी मनसहित ही होते हैं, तिर्यंच दोनों जाति के (अर्थात मनरहित तथा मनसहित) होते हैं ॥११५॥