GP:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 14 - समय-व्याख्या - हिंदी
From जैनकोष
यहाँ द्रव्य के आदेश के वश सप्त-भंगी कही है ।
- द्रव्य 'स्यात् अस्ति' है;
- द्रव्य 'स्यात् नास्ति' है;
- द्रव्य 'स्यात् अस्ति और नास्ति' है;
- द्रव्य 'स्यात् अवक्तव्य' है;
- द्रव्य 'स्यात् अस्ति और अवक्तव्य' है;
- द्रव्य 'स्यात् नास्ति और अवक्तव्य' है;
- द्रव्य 'स्यात् अस्ति, नास्ति और अवक्तव्य' है
यहाँ (सप्त-भंगी में) सर्वथापने का निषेधक, अनेकान्त का द्योतक 'स्यात्' शब्द 'कथंचित' ऐसे अर्थ में अव्यय-रूप से प्रयुक्त हुआ है । वहाँ --
- द्रव्य स्व-द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव से कथन किया जाने पर 'अस्ति' है;
- द्रव्य पर-द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव से कथन किया जाने पर 'नास्ति' है;
- द्रव्य स्व-द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव से और पर-द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव से क्रमश: कथन किया जाने पर कथन किया जाने पर 'अस्ति और नास्ति' है;
- द्रव्य स्व-द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव से कथन किया जाने पर और पर-द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव से युगपत् कथन किया जाने पर 'अवक्तव्य' है;
- द्रव्य स्व-द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव से और युगपद स्व-पर-द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव से कथन किया जाने पर 'अस्ति और अवक्तव्य' है;
- द्रव्य पर-द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव से और युगपत् स्व-पर-द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव से कथन किया जाने पर 'नास्ति और अवक्तव्य' है;
- द्रव्य स्व-द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव से, पर-द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव से और युगपत् स्व-पर-द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव से कथन किया जाने पर 'अस्ति, नास्ति और अवक्तव्य' है ।
- स्वरुपादि से 'अशून्य' है,
- पररुपादि से 'शून्य' है,
- दोनों से (स्वरुपादि से और पररुपादि से) 'अशून्य और शून्य' है,
- दोनों से (स्वरुपादि से और पररुपादि से) एक ही साथ 'अवाच्य' है, भंगों के संयोग कथन करने पर
- 'अशून्य और अवाच्य' है,
- 'शून्य और अवाच्य' है,
- 'अशून्य, शून्य और अवाच्य' है ।