GP:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 15 - समय-व्याख्या - हिंदी
From जैनकोष
यहाँ उत्पाद में असत् का प्रादुर्भाव का और व्यय में सत् के विनाश का निषेध किया है (अर्थात उत्पाद होने से कहीं असत् की उत्पत्ति नहीं होती और व्यय होने से कहीं सत् का विनाश नहीं होता --ऐसा इस गाथा में कहा है ) ।
भाव का (सत् द्रव्य का) द्रव्य-रूप से विनाश नहीं है, अभाव का (असत् अन्य-द्रव्य का) द्रव्य-रूप से उत्पाद नहीं है; परन्तु भाव (सत् द्रव्य), सत् के विनाश और असत् के उत्पाद बिना ही, गुण-पर्यायों में विनाश और उत्पाद करते हैं । जिस प्रकार घी की उत्पत्ति में गोरस का (सत् का) विनाश नहीं है तथा गोरस से भिन्न पदार्थान्तर का (असत् का) उत्पाद नहीं है, किन्तु गोरस को ही, सत् का विनाश और असत् का उत्पाद किये बिना ही, पूर्व अवस्था से विनाश प्राप्त होने वाले और उत्तर अवस्था से उत्पन्न होने वाले स्पर्श-सर-गंध-वर्णादिक परिणामी गुणों में मक्खन पर्याय विनाश को प्राप्त होती है तथा घी पर्याय उत्पन्न होती है; उसी प्रकार सर्व भावों का भी वैसा ही है (अर्थात समस्त द्रव्यों को नवीन पर्याय की उत्पत्ति में सत् का विनाश नहीं है और असत् का उत्पाद नहीं है, किन्तु सत् का विनाश और असत् का उत्पाद बिना ही, पहले की--पुरानी अवस्था से विनाश को प्राप्त होने वाले और बाद की--नवीन अवस्था से उत्पन्न होनेवाले परिणामी गुणों में पहले की पर्याय का विनाश और बाद की पर्याय की उत्पत्ति होती है )॥१५॥