GP:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 161 - समय-व्याख्या - हिंदी
From जैनकोष
यह, सर्व संसारी आत्मा मोक्षमार्ग के योग्य होने का निराकरण (निषेध) है।
वास्तव में सौख्य का कारण स्वभाव की १प्रतिकूलता का अभाव है । आत्मा का 'स्वभाव' वास्तव में दृशि-ज्ञप्ति (दर्शन और ज्ञान) है । उन दोनों को २विषयप्रतिबन्ध होना सो 'प्रतिकूलता' है । मोक्ष में वास्तव में आत्मा सर्व को जानता और देखता होने से उसका अभाव होता है (अर्थात् मोक्ष में स्वभाव की प्रतिकूलता का अभाव होता है) । इसलिये ३उसका अभाव जिसका कारण है ऐसे ४अनाकुलतालक्षणवाले परमार्थ-सुख की मोक्ष में अचलित अनुभूति होती है । इस प्रकार भव्य जीव ही भाव से जानता है, इसलिये वही मोक्षमार्ग के योग्य है; अभव्य जीव इस प्रकार श्रद्धा नहीं करता, इसलिये वह मोक्षमार्ग के अयोग्य ही है ।
इससे (ऐसा कहा कि) कतिपय ही संसारी मोक्षमार्ग के योग्य हैं, सर्व नहीं ॥१६१॥
१प्रतिकूलता = विरुद्धता; विपरीतता; ऊलटापन ।
२विषयप्रतिबन्ध = विषय में रुकावट अर्थात् मर्यादितपना । (दर्शन और ज्ञान के विषय में मर्यादितपना होना वह स्वभाव की प्रतिकूलता है ।)
३पारमार्थिक सुख का कारण स्वभाव की प्रतिकूलता का अभाव है ।
४पारमार्थिक सुख का लक्षण अथवा स्वरूप अनाकुलता है ।