GP:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 168 - अर्थ
From जैनकोष
संयम-तप संयुक्त होने पर भी जिसकी बुद्धि का आकर्षण पदार्थों सहित तीर्थंकर के प्रति है तथा जिसे सूत्र के प्रति रुचि है, उसे निर्वाण दूरतर है ।
संयम-तप संयुक्त होने पर भी जिसकी बुद्धि का आकर्षण पदार्थों सहित तीर्थंकर के प्रति है तथा जिसे सूत्र के प्रति रुचि है, उसे निर्वाण दूरतर है ।