GP:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 169 - अर्थ
From जैनकोष
अरहन्त, सिद्ध, चैत्य, प्रवचन का भक्त होता हुआ जो उत्कृष्टरूप से तप:कर्म करता है, वह नियम से सुरलोक को प्राप्त होता है ।
अरहन्त, सिद्ध, चैत्य, प्रवचन का भक्त होता हुआ जो उत्कृष्टरूप से तप:कर्म करता है, वह नियम से सुरलोक को प्राप्त होता है ।