GP:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 23 - समय-व्याख्या - हिंदी
From जैनकोष
काल अस्तिकाय-रूप से अनुक्त (नहीं कहा गया) होने पर भी उसे अर्थपना (पदार्थपना) सिद्ध होता है ऐसा यहाँ दर्शाया है ।
इस जगत में वास्तव में जीवों को और पुद्गलों को सत्ता-स्वभाव के कारण प्रतिक्षण उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य की एक-वृत्ति रूप परिणाम वर्तता है । वह (परिणाम) वास्तव में सहकारी कारण के सद्भाव में दिखाई देता है, गति-स्थिति-अवगाह परिणाम की भाँती । (जिस प्रकार गति, स्थिति और अवगाह-रूप परिणाम धर्म, अधर्म और आकाशरूप सहकारी कारणों के सद्भाव में होते हैं, उसी प्रकार उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य की एकता रूप परनाम सहकारी कारण के सद्भाव में होते हैं ।) यह जो सहकारी कारण सो काल है । जीव-पुद्गल के परिणाम की अन्यथा अनुपपत्ति द्वारा ज्ञात होता है इसलिए, निश्चय-काल (अस्तिकाय-रूप से) अनुक्त होने पर भी (द्रव्य-रूप से) विद्यमान है ऐसा निश्चित होता है । और जो निश्चय काल की पर्याय-रूप व्यवहार-काल वह, जीव-पुद्गलों के परिणाम से व्यक्त (गम्य) होता है इसलिए अवश्य तदाश्रित ही (जीव तथा पुद्गल के परिणाम के आश्रित ही) गिना जाता है ॥२३॥