GP:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 29 - समय-व्याख्या - हिंदी
From जैनकोष
यह, जीवत्व-गुण की व्याख्या है ।
प्राण इन्द्रिय, बल, आयु और उच्छ्वास-स्वरूप है । उनमें (प्राणों में), चित्सामान्य-रूप अन्वय वाले वे भाव-प्राण है और पुद्गल-सामान्य-रूप अन्वय वाले वे द्रव्य-प्राण हैं । उन दोनों प्राणों को त्रिकाल अच्छिन्न-सन्तान-रूप से (अटूट धारा से) धारण करता है इसलिए संसारी को जीवत्व है । मुक्त को (सिद्ध को) तो केवल भाव-प्राण ही धारण होने से जीवत्व है ऐसा समझना ॥२९॥