GP:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 40.2 - अर्थ
From जैनकोष
लब्धि और भावना रूप जानने की अपेक्षा सम्पूर्ण वस्तु को जानने वाले उपयोग या प्रमाणरूप और वस्तु के एकदेश को जानने वाले नय विकल्परूप ज्ञान को ज्ञानी श्रुतज्ञान कहते हैं ।
लब्धि और भावना रूप जानने की अपेक्षा सम्पूर्ण वस्तु को जानने वाले उपयोग या प्रमाणरूप और वस्तु के एकदेश को जानने वाले नय विकल्परूप ज्ञान को ज्ञानी श्रुतज्ञान कहते हैं ।