GP:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 40.4 - अर्थ
From जैनकोष
मन:-पर्यय ज्ञान, ऋजुमति और विपुल-मति के भेद से दो प्रकार का है; तथा संयम-लब्धि युक्त अप्रमत्त जीव के विशुद्ध परिणाम में होता है ।
मन:-पर्यय ज्ञान, ऋजुमति और विपुल-मति के भेद से दो प्रकार का है; तथा संयम-लब्धि युक्त अप्रमत्त जीव के विशुद्ध परिणाम में होता है ।