GP:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 40.6 - अर्थ
From जैनकोष
मिथ्यात्व के कारण भाव आवरण से ज्ञान और विरतिभाव मिथ्यात्वरूप हो जाते हैं; ज्ञेयों को जानते समय (सभी नय) दुर्नय तथा (सभी से प्रमाण) दुष्प्रमाण कहलाते हैं ।
मिथ्यात्व के कारण भाव आवरण से ज्ञान और विरतिभाव मिथ्यात्वरूप हो जाते हैं; ज्ञेयों को जानते समय (सभी नय) दुर्नय तथा (सभी से प्रमाण) दुष्प्रमाण कहलाते हैं ।