GP:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 49 - समय-व्याख्या - हिंदी
From जैनकोष
यह, समवाय में पदार्थांतर-पना होने का निराकरण (खण्डन) है ।
द्रव्य और गुण एक अस्तित्व से रचित हैं उनकी जो अनादि-अनन्त सहवृत्ति (एक साथ रहना) वह वास्तव में समवर्ती-पना है; वाही जैनों के मत में समवाय है; वही, संज्ञादि भेद होने पर भी (द्रव्य और गुणों को संज्ञा-लक्षण-प्रयोजन आदि से भेद होने पर भी) वस्तु-रूप से अभेद होने से अपृथक्पना है; वही, युत-सिद्ध के कारण-भूत १अस्तित्वान्तर का अभाव होने से अयुत-सिद्ध-पना है । इसलिए २समवर्तित्व-स्वरूप समवाय-वाले द्रव्य और गुणों को अयुत-सिद्ध ही है, पृथक्-पना नहीं है ॥४९॥
१अस्तित्वान्तर = भिन्न अस्तित्व (युत-सिद्धि का कारण भिन्न-भिन्न अस्तित्व है । लकड़ी और लकड़ी-वाले की भाँति गुण और द्रव्य के अस्तित्व कभी भिन्न ण होने से उन्हें युत्सिद्ध-पना नहीं हो सकता )
२समवाय स्वरूप समवर्ती-पना अर्थात् अनादि-अनन्त सहवृत्ति है । द्रव्य और गुणों को ऐसा समवाय (अनादि-अनन्त तादात्म्य सहवृत्ति) होने से उन्हें अयुत-सिद्धता है, कभी भी पृथक-पना नहीं है ।