GP:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 54 - अर्थ
From जैनकोष
नारक, तिर्यंच, मनुष्य, देव-इन नामों से संयुक्त (नामकर्म की) प्रकृतियाँ सत भाव का नाश और असत भाव का उत्पाद करती हैं।
नारक, तिर्यंच, मनुष्य, देव-इन नामों से संयुक्त (नामकर्म की) प्रकृतियाँ सत भाव का नाश और असत भाव का उत्पाद करती हैं।