GP:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 58 - अर्थ
From जैनकोष
यदि (सर्वथा) भाव कर्मकृत हों, तो आत्मा कर्म का कर्ता होना चाहिए; परन्तु वह कैसे हो सकता है? क्योंकि आत्मा अपने भाव को छोडकर अन्य कुछ भी नहीं करता है ।
यदि (सर्वथा) भाव कर्मकृत हों, तो आत्मा कर्म का कर्ता होना चाहिए; परन्तु वह कैसे हो सकता है? क्योंकि आत्मा अपने भाव को छोडकर अन्य कुछ भी नहीं करता है ।