GP:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 59 - अर्थ
From जैनकोष
(रागादि) भाव कर्मनिमित्तक हैं, कर्म (रागादि) भावनिमित्तक हैं; परन्तु वास्तव में उनके (परस्पर ) कर्तापना नहीं है; तथा वे कर्ता के बिना भी नहीं होते हैं।
(रागादि) भाव कर्मनिमित्तक हैं, कर्म (रागादि) भावनिमित्तक हैं; परन्तु वास्तव में उनके (परस्पर ) कर्तापना नहीं है; तथा वे कर्ता के बिना भी नहीं होते हैं।