GP:पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 87 - समय-व्याख्या - हिंदी
From जैनकोष
धर्म और अधर्म गति और स्थिति के हेतु होने पर भी वे अत्यंत उदासीन हैं ऐसा यहाँ कथन है ।
जिस प्रकार गति परिणत पवन ध्वजाओं के गति परिणाम का हेतु-कर्ता दिखाई देता है, उसी प्रकार धर्म (जीव-पुद्गलों के गति परिणाम का हेतु-कर्ता) नहीं है । वह (धर्म) वास्तव में निष्क्रिय होने से कभी गति परिणाम को ही प्राप्त नहीं होता, तो फ़िर उसे (पर के) सहकारी के रूप में पर के गति परिणाम का हेतु कर्तत्व कहाँ से होगा ? (नहीं हो सकता) किन्तु जिस प्रकार पानी मछलियों का (गति परिणाम में) मात्र आश्रय रूप कारण के रूप में गति का उदासीन ही प्रसारक है, उसी प्रकार धर्म जीव-पुद्गलों की (गति परिणाम में) मात्र आश्रय रूप कारण के रूप में गति का उदासीन ही प्रसारक (अर्थात गति प्रसार का उदासीन ही निमित्त) है।
और (अधर्मास्तिकाय के सम्बन्ध में भी ऐसा है कि) - जिस प्रकार गति-पूर्वक स्थिति-परिणत अश्व सवार के (गति-पूर्वक) स्थिति-परिणाम का हेतु-कर्ता दिखाई देता है, उसी प्रकार अधर्म (जीव-पुद्गलों के गति-पूर्वक स्थिति-परिणाम का हेतु-कर्ता) नहीं है । वह (अधर्म) वास्तव में निष्क्रिय होने से कभी गति-पूर्वक स्थिति-परिणाम को ही प्राप्त नहीं होता, तो फ़िर उसे (पर के) सह-स्थायी के रूप में गति-पूर्वक स्थिति-परिणाम का हेतु-कर्तत्व कहाँ से होगा ? (नहीं हो सकता)। किन्तु जिस प्रकार पृथ्वी अश्व को (गति-पूर्वक स्थिति-परिणाम में) मात्र आश्रय-रूप कारण के रूप में गति-पूर्वक स्थिति की उदासीन ही प्रसारक है, उसी प्रकार अधर्म जीव-पुद्गलों को (गति-पूर्वक स्थिति-परिणाम में) मात्र आश्रय-रूप कारण के रूप में गति-पूर्वक स्थिति का उदासीन ही प्रसारक (अर्थात गति-पूर्वक स्थिति प्रसार का उदासीन ही निमित्त) है ॥८७॥