GP:प्रवचनसार - गाथा 100 - तात्पर्य-वृत्ति - हिंदी
From जैनकोष
[ण भवो भंगविहीणो] निर्दोष परमात्मा की रुचिरूप सम्यक्त्व-पर्याय का उत्पाद, वह उससे विपरीत मिथ्यात्व-पर्याय के विनाश बिना नहीं होता । मिथ्यात्व-पर्याय के विनाश बिना सम्यक्त्व-पर्याय का उत्पाद क्यों नहीं होता? उपादानकारण का अभाव होने से जैसे मिट्टी के पिण्ड के विनाश बिना घड़े की उत्पत्ति नहीं होती उसीप्रकार मिथ्यात्व-पर्याय के विनाश बिना सम्यक्त्व-पर्याय की उत्पत्ति नहीं होती है । और दूसरा भी कारण है - मिथ्यात्व-पर्याय के विनाश का सम्यक्त्व-पर्यायरूप से प्रतिभासन होने से उसके विनाश बिना सम्यक्त्व-पर्याय उत्पन्न नहीं होती है । उसके विनाश का सम्यक्त्व-पर्यायरूप से प्रतिभासन कैसे होता है? 'अभाव अन्य पदार्थ के स्वभावरूप होता है'- ऐसा वचन होने से जैसे मिट्टी के पिण्ड का अभाव घड़े की उत्पत्तिरूप से प्रतिभासित होता है; उसीप्रकार मिथ्यात्व-पर्याय का अभाव सम्यक्त्व-पर्याय की उत्पत्तिरूप से प्रतिभासित होता है ।
यदि सम्यक्त्व के उपादान-कारणभूत मिथ्यात्व-पर्याय के विनाश बिना ही शुद्धात्मा की अनुभूति-रुचि रूप सम्यक्त्व का उत्पाद होता है, तो उपादान-कारण से रहित आकाशफूल आदि का भी उत्पाद हो । परन्तु वैसा तो नहीं होता है । [भंगो वा णत्थि संभवविहीणो] परद्रव्य उपादेय है ऐसी रुचिरूप मिथ्यात्व का विनाश नही होता है । कैसे मिथ्यात्व का विनाश नहीं होता है? पहले कहे हुये सम्यक्त्व-पर्याय के उत्पाद से रहित मिथ्यात्व का विनाश नहीं होता है । सम्यक्त्व-पर्याय की उत्पत्ति के बिना मिथ्यात्व-पर्याय का विनाश क्यों नहीं होता है? विनाश के कारण का अभाव होने से, घड़े की उत्पत्ति के अभाव में मिट्टी के पिण्ड का विनाश नहीं होने के समान, सम्यक्त्व की उत्पत्ति के अभाव में मिथ्यात्व का विनाश नही होता है । और दूसरा भी कारण है - सम्यक्त्व पर्याय के उत्पाद का मिथ्यात्व-पर्याय के अभावरूप दर्शन होने के कारण, उसकी उत्पत्ति के बिना मिथ्यात्व-पर्याय नष्ट नहीं होती है । उसका उत्पाद मिथ्यात्व-पर्याय के विनाश बिना क्यों दिखाई नहीं देता है? एक पर्याय के अन्य पर्याय की अभावरूपता होने से जैसे घटपर्याय का दर्शन मिट्टी के पिण्ड के अभावरूप से होता है; उसीप्रकार सम्यक्त्व-पर्याय का दिखाई देना मिथ्यात्व-पर्याय के विनाशरूप से होता है ।
यदि सम्यक्त्व की उत्पत्ति के बिना ही मिथ्यात्वपर्याय का अभाव होता है, तो उसका अभाव ही नहीं होगा । सम्यक्त्व की उत्पत्ति बिना मिथ्यात्व का अभाव क्यों नहीं होगा? अभाव के कारण का अभाव होने से (विनाश का कारण उत्पाद है, उसके नहीं होने से) घड़े की उत्पत्ति के अभाव में मिट्टी के पिण्ड का विनाश नहीं होने के समान सम्यक्त्व की उत्पत्ति के अभाव में मिथ्यात्व का विनाश नही होगा ।
[उप्पादो वि य भंगो ण विणा दव्वेण अत्थेण] परमात्मा की रुचिरूप सम्यक्त्व का उत्पाद तथा उससे विपरीत मिथ्यात्व का विनाश नहीं होता है । उन दोनों का उत्पाद-विनाश किसके बिना नहीं होता है? उन दोनों के आधारभूत परमात्मारूप द्रव्य-पदार्थ के बिना उन दोनों का उत्पाद-विनाश नहीं होता है । दोनों के आधारभूत परमात्म-पदार्थ के बिना दोनों का उत्पाद-विनाश क्यों नहीं होता है? द्रव्य के अभाव में विनाश और उत्पत्ति का अभाव होने से मिट्टी द्रव्य के अभाव में घड़े की उत्पत्ति तथा मिट्टी के पिण्ड का विनाश नहीं होने के समान परमात्म-द्रव्य के अभाव में सम्यक्त्व की उत्पत्ति और मिथ्यात्व का विनाश नहीं होता है ।
इसप्रकार जैसे सम्यक्त्व और मिथ्यात्व - इन दो पर्यायों में एक दूसरे की अपेक्षा सहित उत्पाद आदि तीनों दिखाये हैं, उसीप्रकार सभी द्रव्यों की पर्यायों में देख लेना चाहिये- समझ लेना चाहिये ॥११०॥