GP:प्रवचनसार - गाथा 110 - तत्त्व-प्रदीपिका - हिंदी
From जैनकोष
वास्तव में द्रव्य से पृथग्भूत (भिन्न) ऐसा कोई गुण या ऐसी कोई पर्याय कुछ नहीं होता; जैसे—सुवर्ण से पृथग्भूत उसका पीलापन आदि या उसका कुण्डलत्वादि नही होता तदनुसार । अब, उस द्रव्य के स्वरूप की वृत्तिभूत जो अस्तित्व नाम से कहा जाने वाला द्रव्यत्व वह उसका ‘भाव’ नाम से कहा जाने वाला गुण ही होने से, क्या वह द्रव्य से पृथक्रूप वर्तता है? नहीं ही वर्तता । तब फिर द्रव्य स्वयमेव सत्ता हो ॥११०॥