GP:प्रवचनसार - गाथा 110 - तात्पर्य-वृत्ति - हिंदी
From जैनकोष
[णत्थि] नहीं पाया जाता है । वह कौन नहीं पाया जाता है? [गुणो त्ति व कोई] कोई गुण नहीं पाया जाता है । मात्र गुण ही नहीं [पज्जाओ त्तिह वा] कोई पर्याय भी इस लोक में नहीं पाई जाती है । यह दोनों कैसे नहीं पाए जाते है? [विणा] ये बिना नहीं पाये जाते है । ये किसके बिना नहीं पाये जाते हैं? [दव्वं] ये द्रव्य के बिना नहीं पाये जाते है । अब द्रव्य (के सम्बन्ध में) कहते हैं - [दव्वत्तं पुण भावो] - द्रव्यत्व अर्थात् अस्तित्व । वह अस्तित्व और क्या कहलाता है? [भाव:] वह भाव कहलाता है? । भाव का क्या अर्थ है? उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यस्वरूप सद्भाव-विद्यमानता भाव का अर्थ है । [तम्हा दव्वं सयं सत्ता] - इसलिये अभेदनय से सत्ता स्वयं ही द्रव्य है ।
वह इसप्रकार- मुक्तात्मद्रव्य में स्वभाव की उत्कृष्ट परिपूर्ण प्राप्तिरूप मोक्षपर्याय और केवलज्ञानादिरूप गुणसमूह - जिस कारण ये दोनों भी परमात्मद्रव्य के बिना नहीं है- नहीं पाये जाते हैं । ये किस कारण नहीं पाए जाते है? प्रदेशों का अभेद होने से ये द्रव्य के बिना नहीं पाये जाते हैं । उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य स्वरूप शुद्धसत्तारूप मुक्तात्मद्रव्य है । इसलिये अभेदनय से सत्ता ही द्रव्य है - ऐसा अर्थ है ।
जैसे मुक्तात्मद्रव्य में गुण-पर्यायों के साथ अभेद व्याख्यान किया है वैसा ही यथासंभव सभी द्रव्यो में जानना चाहिये ॥१२०॥