GP:प्रवचनसार - गाथा 111 - तात्पर्य-वृत्ति - हिंदी
From जैनकोष
[एवंविहसब्भावे] इसप्रकार के सद्भाव में -
- सत्तालक्षण
- उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य लक्षण और
- गुण-पर्याय लक्षण
वह इसप्रकार- जैसे
- जिससमय द्रव्यार्थिकनय से विवक्षा की जाती है तो कटक (कड़ा) पर्याय में जो स्वर्ण है वही कंकण पर्याय में है, दूसरा नहीं है; उससमय सद्भावनिबद्ध- विद्यमान वस्तु का ही उत्पाद है । (अविद्यमान नवीनपर्याय उत्पन्न होने पर भी) विद्यमानवस्तु का ही उत्पाद कैसे है? द्रव्य का द्रव्यरूप से अविनाशी होने के कारण विद्यमान वस्तु का ही उत्पाद है । और
- जब पर्याय (पर्यायार्थिकनय) से विवक्षा की जाती है, तब कटकपर्याय से भिन्न जो सुवर्ण सम्बन्धी कंकण पर्याय, वह होती ही नहीं है, तब फिर असत् का उत्पाद है । असत् पर्याय का उत्पाद कैसे है? पूर्व पर्याय का विनाश हो जाने के कारण असत् का उत्पाद है ।
- जब द्रव्यार्थिकनय से विवक्षा की जाती है तब पहले गृहस्थदशा में इस-इस प्रकार के गृह- व्यापार (घर-गृहस्थी के कार्यो) को करते थे, बाद में जिन-दीक्षा (मुनि-दीक्षा) ग्रहण कर, अब वे ही रामादि केवलीपुरुष, निश्चय रत्नत्रयस्वरूप उत्कृष्ट आत्मध्यान से अनन्तसुखरूपी अमृत से तृप्त हुये हैं और दूसरे नहीं; तब सद्भावनिबद्ध (विद्यमानता सहित) ही उत्पाद हुआ है । अविद्यमान नवीनपर्याय उत्पन्न होने पर भी विद्यमान का ही उत्पाद कैसे हुआ? पुरुष (जीव) रूप से नष्ट नहीं होने के कारण, विद्यमान का ही उत्पाद हुआ है । और
- जब पर्यायनय से विवक्षा की जाती है; तब पहले सराग-अवस्था से भिन्न यह भरत, सगर, राम, पाण्डव आदि केवली-पुरुषों की उपराग-रहित वीतराग-परमात्म-पर्याय वही नहीं है; तब फिर असद्भावनिबद्ध-अविद्यमान का ही उत्पाद हुआ है । अविद्यमान का उत्पाद कैसे होता है? पहले की पर्याय से भिन्नता के कारण अविद्यमान का उत्पाद होता है ।