GP:प्रवचनसार - गाथा 125 - तात्पर्य-वृत्ति - हिंदी
From जैनकोष
[अप्पा परिणामप्पा] आत्मा है । आत्मा कैसा है? आत्मा परिणाम-स्वभावी है । आत्मा परिणाम-स्वभावी क्यों है? [परिणामो सयमादा] परिणाम स्वयं आत्मा है, ऐसा पहले (गाथा नं. १३२ में) स्वयं ही कहा गया होने से आत्मा परिणाम-स्वभावी है । परिणाम कहा जाता है -- [परिणामो णाणकम्मफलभावी] परिणाम है । परिणाम किस विशेषता वाला है?
- ज्ञानभावी
- कर्मभावी और
- कर्मफलभावी
- [णाणं] पहले (गाथा नं १३४ में) कही हुई ज्ञान चेतना है ।
- [कम्मं] वहाँ ही कहे गये लक्षणवाली कर्म चेतना है ।
- [फलं च] और पहले (वहीं) कहे हुये लक्षण वाली कर्मफल चेतना है ।
इससे क्या कहा गया है? तीन प्रकार के चेतना परिणाम से परिणमित होता हुआ आत्मा क्या करता है? परिणामी आत्मा निश्चय रत्नत्रय स्वरूप शुद्धोपयोग से मोक्ष को तथा शुभ-अशुभ परिणाम से बन्ध को साधता है- प्राप्त करता है ॥१३५॥