GP:प्रवचनसार - गाथा 132 - अर्थ
From जैनकोष
सूक्ष्म से लेकर पृथ्वी पर्यन्त सर्व पुद्गल के वर्ण, रस, गन्ध और स्पर्श विद्यमान हैं; तथा जो शब्द है,वह पुद्गल की विविध प्रकार की पर्याय है ।
सूक्ष्म से लेकर पृथ्वी पर्यन्त सर्व पुद्गल के वर्ण, रस, गन्ध और स्पर्श विद्यमान हैं; तथा जो शब्द है,वह पुद्गल की विविध प्रकार की पर्याय है ।