GP:प्रवचनसार - गाथा 133-134 - तत्त्व-प्रदीपिका - हिंदी
From जैनकोष
- युगपत् सर्वद्रव्यों के साधारण अवगाह का हेतुपना आकाश का विशेष गुण है ।
- एक ही साथ सर्व गमन-परिणामी (गतिरूप परिणमित) जीव-पुद्गलों के गमन का हेतुपना धर्म का विशेष गुण है ।
- एक ही साथ सर्व स्थान-परिणामी (स्थितिरूप परिणमित) जीव-पुद्गलों के स्थिर होने का हेतुत्व स्थिति का (स्थिर होने का निमित्तपना) अधर्म का विशेषगुण है ।
- (काल के अतिरिक्त) शेष समस्त द्रव्यों की प्रति-पर्याय में समयवृत्ति का हेतुपना ( समय-समय की परिणति का निमित्तत्व) काल का विशेष गुण है ।
- चैतन्य-परिणाम जीव का विशेष गुण है ।
वहाँ एक ही काल में समस्त द्रव्यों को साधारण अवगाह का संपादन (अवगाह हेतुपनेरूप लिंग) आकाश को बतलाता है; क्योंकि शेष द्रव्यों के सर्वगत (सर्वव्यापक) न होने से उनके वह संभव नहीं है ।
इसी प्रकार एक ही काल में गतिपरिणत (गतिरूप से परिणमित हुए) समस्त जीव-पुद्गलों को लोक तक गमन का हेतुपना धर्म को बतलाता है; क्योंकि
- काल और पुद्गल अप्रदेशी हैं इसलिये उनके वह संभव नहीं है;
- जीव समुद्घात को छोड़कर अन्यत्र लोक के असंख्यातवें भाग मात्र है, इसलिये उसके वह संभव नहीं है,
- लोक-अलोक की सीमा अचलित होने से आकाश को वह संभव नहीं है और
- विरुद्ध कार्य का हेतु होने से अधर्म को वह संभव नहीं है ।
(काल और पुद्गल एकप्रदेशी हैं, इसलिये वे लोक तक गमन में निमित्त नहीं हो सकते; जीव समुद्घात को छोड़कर अन्य काल में लोक के असंख्यातवें भाग में ही रहता है, इसलिये वह भी लोक तक गमन में निमित्त नहीं हो सकता; यदि आकाश गति में निमित्त हो तो जीव और पुद्गलों की गति अलोक में भी होने लगे, जिससे लोकाकाश की मर्यादा ही न रहेगी; इसलिये गतिहेतुत्व आकाश का भी गुण नहीं है; अधर्म द्रव्य तो गति से विरुद्ध स्थितिकार्य में निमित्तभूत है, इसलिये वह भी गति में निमित्त नहीं हो सकता । इस प्रकार गतिहेतुत्वगुण धर्मनामक द्रव्य का अस्तित्व बतलाता है ।)
इसी प्रकार एक ही काल में स्थितिपरिणत समस्त जीव-पुद्गलों को लोक तक स्थिति का हेतुपना अधर्म को बतलाता है; क्योंकि
- काल और पुद्गल अप्रदेशी होने से उनके वह संभव नहीं है;
- जीव समुद्घात को छोड़कर अन्यत्र लोक के असंख्यातवें भाग मात्र है, इसलिये उसके वह संभव नहीं है;
- लोक और अलोक की सीमा अचलित होने से आकाश के वह संभव नहीं है, और
- विरुद्ध कार्य का हेतु होने से धर्म को वह संभव नहीं है ।
इसी प्रकार (काल के अतिरिक्त) शेष समस्त द्रव्यों के प्रत्येक पर्याय में समयवृत्ति का हेतुपना काल को बतलाता है, क्योंकि उनके, समय-विशिष्ट वृत्ति कारणान्तर से सधती होने से (उनके समय से विशिष्ट ऐसी परिणति अन्य कारण से होती है, इसलिये) स्वत: उनके वह (समयवृत्ति हेतुपना) संभवित नहीं है ।
इसी प्रकार चैतन्य-परिणाम जीव को बतलाता है, क्योंकि वह चेतन होने से शेष द्रव्यों के संभव नहीं है ।
इस प्रकार गुण-विशेष से द्रव्य-विशेष जानना चाहिये ॥१३३-१३४॥