GP:प्रवचनसार - गाथा 133-134 - तात्पर्य-वृत्ति - हिंदी
From जैनकोष
[आगासस्सवगाहो] आकाश का अवगाहहेतुता (जगह देने में निमित्त होना) [धम्म-दव्वस्स गमणहेदुत्तं] धर्म द्रव्य का गमनहेतुता (चलने में निमित्त होना) [धम्मेदरदव्वस्स दु गुणो पुणोठाणकारणदा] और धर्मेतर द्रव्य का- अधर्म द्रव्य का स्थानकारणता (ठहरने में निमित्त होना) गुण है- इसप्रकार पहली (१४३ वी) गाथा पूर्ण हुई ।
[कालस्स वट्टणा से] काल का वर्तना गुण है । [गुणोवओगो त्ति अप्पणो भणिदो] ज्ञान-दर्शन दोनों उपयोग आत्मा के गुण कहे गये हैं । [णेया संखेवादो गुणा हि मुत्तिप्पहीणाणं] इसप्रकार संक्षेप से अमूर्त द्रव्यों के गुण जानना चाहिये ।
वह इसप्रकार-
- अन्य द्रव्यों के असम्भव-नहीं पाये जाने वाले सभी द्रव्यों को साधारण-समान रूप से, अवगाह-हेतुत्वरूप विशेषगुण से ही विद्यमान आकाश का निश्चय किया जाता है ।
- अन्य द्रव्यों के असम्भव, गति रूप परिणत सम्पूर्ण जीव-पुद्गलों के एक समय में समानरूप से गमन में हेतुरूप विशेष गुण से ही विद्यमान धर्म द्रव्य का निश्चय किया जाता है । और उसी प्रकार
- अन्य द्रव्यों के असम्भव स्थिति रूप परिणत सम्पूर्ण जीव-पुद्गलों की एक समय में समान रूप से स्थिति में हेतु रूप विशेष गुण से ही विद्यमान अधर्म द्रव्य का निश्चय किया जाता है ।
- अन्य द्रव्यों के असम्भव, सभी द्रव्यों को एक साथ पर्याय रूप परिणमन में हेतु रूप विशेष गुण से ही विद्यमान काल द्रव्य का निश्चय किया जाता है ।
- अन्य अचेतन पाँचों द्रव्यों के असम्भव, सभी जीवों में पाये जाने वाले परिपूर्ण निर्मल केवलज्ञान-केवलदर्शन (मात्र ज्ञान-दर्शन) दो विशेष गुणों से ही विद्यमान शुद्ध बुद्ध एक स्वभावी परमात्मद्रव्य का निश्चय किया जाता है ।