GP:प्रवचनसार - गाथा 138 - तात्पर्य-वृत्ति - हिंदी
From जैनकोष
[समओ] समय पर्याय का उपादान कारण होने से समय-कालाणु-कालद्रव्य [दु] और । वह काल द्रव्य कैसा है? [अप्पदेसो] अप्रदेश-दूसरे आदि प्रदेशों से रहित है । वह अप्रदेशी काल द्रव्य क्या करता है? [सो वट्टदि] वह पूर्वोक्त कालाणु परमाणु के गतिरूप परिणमन के निमित्त से वर्तता है-परिणमन करता है । जो गति परिणत है, वह परमाणु किस सम्बन्धी है- गतिपरिणत वह परमाणु किसका है? [पदेसमेत्तस्स दव्वजादस्स] प्रदेशमात्र-एक प्रदेशी पुद्गल जातिरूप परमाणु द्रव्य का वह गति परिणत परमाणु है । क्या करते हुये परमाणु के माध्यम से काल द्रव्य परिणमित होता है? [वदिवददो] मन्दगति से जाते हुये परमाणु के माध्यम से वह परिणमित होता है । वह परमाणु किसकी ओर मन्दगति से जाता है? [पदेसं] वह कालाणु से व्याप्त एक प्रदेश की ओर जाता है । वह प्रदेश किसका है? [आगासदव्वस्स] वह प्रदेश आकाश द्रव्य का है ।
वह इसप्रकार- कालाणु अप्रदेशी (एक प्रदेशी) है । वह अप्रदेशी कैसे है? द्रव्य की अपेक्षा एक प्रदेशी होने के कारण वह अप्रदेशी है । अथवा जैसे स्नेह गुण (स्निग्ध गुण-चिकनाई) द्वारा पुद्गलों का परस्पर बन्ध होता है, उसप्रकार के बन्ध का अभाव होने से पर्याय अपेक्षा भी वह अप्रदेशी है ।
यहाँ अर्थ यह है कि जिस कारण पुद्गल परमाणु के एक प्रदेश पर्यन्त गमन में सहकार्य करता है-निमित्त होता है, अधिक में नहीं; इससे ज्ञात होता है कि काल द्रव्य भी एक प्रदेशी ही है ॥१४९॥