GP:प्रवचनसार - गाथा 146 - तत्त्व-प्रदीपिका - हिंदी
From जैनकोष
- स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और श्रोत्र -- यह पाँच इन्द्रियप्राण हैं;
- काय, वचन और मन -- यह तीन बलप्राण हैं,
- भव धारण का निमित्त (अर्थात् मनुष्यादि पर्याय की स्थिति का निमित्त) आयुप्राण है;
- नीचे और ऊपर जाना जिसका स्वरूप है ऐसी वायु (श्वास) श्वासोच्छ्वास प्राण है ॥१४६॥