GP:प्रवचनसार - गाथा 147 - तत्त्व-प्रदीपिका - हिंदी
From जैनकोष
(व्युत्पत्ति के अनुसार) प्राणसामान्य से जीता है, जियेगा, और पहले जीता था, वह जीव है । इस प्रकार (प्राणसामान्य) अनादि संतानरूप (प्रवाहरूप) से प्रवर्तमान होने से (संसारदशा में) त्रिकाल स्थायी होने से प्राणसामान्य जीव के जीवत्व का हेतु है ही । तथापि वह (प्राण सामान्य) जीव का स्वभाव नहीं है क्योंकि वह पुद्गलद्रव्य से निष्पन्न-रचित है ।