GP:प्रवचनसार - गाथा 148 - तात्पर्य-वृत्ति - हिंदी
From जैनकोष
[जीवो णाणणिबद्धो] जीव रूप कर्ता चार प्राणों से निबद्ध-सम्बद्ध-सहित है । वह कैसा होता हुआ प्राणों से सहित है? [बद्धो] शुद्धात्मा की प्राप्ति रूप लक्षण मोक्ष से विलक्षण बँधा हुआ उनसे सहित है । मोक्ष से विलक्षण किनसे बँधा है? [मोहादियेहिं कम्मेहिं] वह मोहनीय आदि कर्मों से बँधा है, इससे ज्ञात होता है कि मोहादि कर्मों से बँधा जीव प्राणों से निबद्ध होता है (कर्मों के बन्धन से रहित जीव प्राणों से निबद्ध नही होता है) इससे ही ज्ञात होता है कि प्राण पुद्गल कर्म के उदय से उत्पन्न है । इसप्रकार का (कर्म-बद्ध प्राणनिबद्ध) होता हुआ वह क्या करता है? [उवभुंजदि कम्मफलं] परम समाधि (उत्कृष्ट स्वरूपलीनता) से उत्पन्न नित्यानन्द एक लक्षण सुखरूपी अमृत-भोजन को नहीं प्राप्त करता हुआ, कड़वे विष के समान कर्मफल को ही भोगता है । [बज्झदि अण्णेहिं कम्मेहिं] उन कर्म के फल को भोगता हुआ यह जीव, कर्म से रहित आत्मा से विपरीत, अन्य नवीन कर्मों से बँधता है । जिस कारण कर्मफल को भोगता हुआ नवीन कर्मों से बँधता है, उससे ज्ञात होता है कि प्राण नवीन पुद्गल कर्मों के कारणभूत हैं ॥१६०॥