GP:प्रवचनसार - गाथा 150 - अर्थ
From जैनकोष
[यावत्] जब तक [देहप्रधानेषु विषयेषु] देहप्रधान विषयों में [ममत्वं] ममत्व को [न त्यजति] नहीं छोड़ता, [कर्ममलीमस: आत्मा] तब तक कर्म से मलिन आत्मा [पुन: पुन:] पुनः पुन: [अन्यान् प्राणान्] अन्य-अन्य प्राणों को [धारयति] धारण करता है ॥