GP:प्रवचनसार - गाथा 151 - तत्त्व-प्रदीपिका - हिंदी
From जैनकोष
वास्तव में पौद्गलिक प्राणों के संतति की निवृत्ति का अन्तरङ्ग हेतु पौद्गलिक कर्म जिसका कारण (निमित्त) है ऐसे उपरक्तता का अभाव है । और वह अभाव जो जीव समस्त इन्द्रियादिक परद्रव्यों के अनुसार परिणति का विजयी होकर, (अनेक वर्णों वाले) आश्रयानुसार सारी परिणति से व्यावृत्त (पृथक्, अलग) हुए स्फटिक मणि की भाँति, अत्यन्त विशुद्ध उपयोगमात्र अकेले आत्मा में सुनिश्चलतया वसता है, उस (जीव) के होता है ।
यहाँ यह तात्पर्य है कि—आत्मा की अत्यन्त विभक्तता सिद्ध करने के लिये व्यवहारजीवत्व के हेतुभूत पौद्गलिक प्राण इस प्रकार उच्छेद करने योग्य हैं ।