GP:प्रवचनसार - गाथा 152 - अर्थ
From जैनकोष
[अस्तित्वनिश्चितस्य अर्थस्य हि] अस्तित्व से निश्चित अर्थ का (द्रव्य का) [अर्थान्तरे सद्य:] अन्य अर्थ में (द्रव्य में) उत्पन्न [अर्थ:] जो अर्थ (भाव) [स पर्याय:] वह पर्याय है [संस्थानादिप्रभेदै:] कि जो संस्थानादि भेदों सहित होती है ।