GP:प्रवचनसार - गाथा 152 - तत्त्व-प्रदीपिका - हिंदी
From जैनकोष
स्वलक्षणभूत स्वरूप-अस्तित्व से निश्चित एक अर्थ का (द्रव्य) का, स्वलक्षणभूत स्वरूपअस्तित्व से ही निश्चित ऐसे अन्य अर्थ में विशिष्ट (भिन्न-भिन्न) रूप से उत्पन्न होता हुआ अर्थ (भाव) अनेक द्रव्यात्मक पर्याय है; जो कि वास्तव में, जैसे पुद्गल की अन्य पुद्गल में अन्य पुद्गलात्मकपर्याय उत्पन्न होती हुई देखी जाती है उसी प्रकार, जीव की पुद्गल में संस्थानादि से विशिष्टतया (संस्थान इत्यादि के भेद सहित) उत्पन्न होती हुई अनुभव में अवश्य आती है । और ऐसी पर्याय योग्य घटित है; क्योंकि जो केवल जीव की व्यतिरेकमात्र है ऐसी अस्खलित एक द्रव्य पर्याय ही अनेक द्रव्यों के संयोगात्मकतया भीतर ज्ञात होती है ।