GP:प्रवचनसार - गाथा 157 - तत्त्व-प्रदीपिका - हिंदी
From जैनकोष
विशिष्ट (विशेष प्रकार की) क्षयोपशमदशा में रहने वाले दर्शनमोहनीय और चारित्रमोहनीयरूप पुद्गलों के अनुसार परिणति में लगा होने से शुभ उपराग का ग्रहण करने से, जो (उपयोग) परम भट्टारक महा देवाधिदेव, परमेश्वर—अर्हंत, सिद्ध और साधु की श्रद्धा करने में तथा समस्त जीवसमूह की अनुकम्पा का आचरण करने में प्रवृत्त है, वह शुभोपयोग है ॥१५७॥