GP:प्रवचनसार - गाथा 158 - तत्त्व-प्रदीपिका - हिंदी
From जैनकोष
विशिष्ट उदयदशा में रहने वाले दर्शनमोहनीय और चारित्रमोहनीयरूप पुद्गलों के अनुसार परिणति में लगा होने से अशुभ उपराग को ग्रहण करने से, जो (उपयोग) परम भट्टारक, महा देवाधिदेव, परमेश्वर—अर्हंत, सिद्ध और साधु को छोड़कर अन्य- उन्मार्ग की श्रद्धा करने में तथा विषय, कषाय, कुश्रवण, कुविचार, कुसंग और उग्रता का आचरण करने में प्रवृत्त है, वह अशुभोपयोग है ॥१५८॥