GP:प्रवचनसार - गाथा 159 - तत्त्व-प्रदीपिका - हिंदी
From जैनकोष
जो यह, (१५६ वीं गाथा में) परद्रव्य के संयोग के कारणरूप में कहा गया अशुद्धोपयोग है, वह वास्तव में मन्द-तीव्र उदयदशा में रहनेवाले परद्रव्यानुसार परिणति के अधीन होने से ही प्रवर्तित होता है, किन्तु अन्य कारण से नहीं । इसलिये यह मैं समस्त परद्रव्य में मध्यस्थ होऊँ । और इस प्रकार मध्यस्थ होता हुआ मैं परद्रव्यानुसार परिणति के अधीन न होने से शुभ अथवा अशुभ ऐसा जो अशुद्धोपयोग उससे मुक्त होकर, मात्र स्वद्रव्यानुसार परिणति को ग्रहण करने से जिसको शुद्धोपयोग सिद्ध हुआ है ऐसा होता हुआ, उपयोगात्मा द्वारा (उपयोगरूप निज स्वरूप से) आत्मा में ही सदा निश्चलरूप से उपयुक्त रहता हूँ । यह मेरा परद्रव्य के संयोग के कारण के विनाश का अभ्यास है ॥१५९॥