GP:प्रवचनसार - गाथा 167 - अर्थ
From जैनकोष
[द्विप्रदेशादय: स्कंधा:] द्विप्रदेशादिक (दो से लेकर अनन्तप्रदेश वाले) स्कंध [सूक्ष्मा: वा बादरा:] जो कि सूक्ष्म अथवा बादर होते हैं और [ससंस्थाना:] संस्थानों (आकारों) सहित होते हैं वे [पृथिवीजलतेजोवायव:] पृथ्वी, जल, तेज और वायुरूप [स्वकपरिणामै: जायन्ते] अपने परिणामों से होते हैं ।