GP:प्रवचनसार - गाथा 168 - तत्त्व-प्रदीपिका - हिंदी
From जैनकोष
सूक्ष्मतया परिणत तथा बादररूप परिणत, अति सूक्ष्म अथवा अति स्थूल न होने से कर्मरूप परिणत होने की शक्तिवाले तथा अति सूक्ष्म अथवा अति स्थूल होने से कर्मरूप परिणत होने की शक्ति से रहित—पुद्गलकार्यों के द्वारा, अवगाह की विशिष्टता के कारण परस्पर बाधक हुये बिना, स्वयमेव सर्वत: लोक गाढ़ भरा हुआ है । इससे निश्चित होता है कि पुद्गलपिण्डों का लाने वाला आत्मा नहीं है ।