GP:प्रवचनसार - गाथा 172 - अर्थ
From जैनकोष
[जीवम्] जीव को [अरस] रस-रहित [अरूपम्] रूप-रहित, [अगंधम्] गंध-रहित, [अव्यक्तम्] अव्यक्त, [चेतनागुणम्] चेतना-गुणयुक्त, [अशब्दम्] अशब्द, [अलिंगग्रहणम्] अलिंगग्रहण (लिंग द्वारा ग्रहण न होने योग्य) और [अनिर्दिष्टसंस्थानम्] जिसका कोई निश्चित संस्थान नहीं कहा गया है ऐसा [जानीहि] जानो ।