GP:प्रवचनसार - गाथा 177 - तत्त्व-प्रदीपिका - हिंदी
From जैनकोष
प्रथम तो यहाँ,
- कर्मों का जो स्निग्धता-रूक्षतारूप स्पर्श-विशेषों के साथ एकत्व-परिणाम है सो केवल पुद्गल-बंध है;
- और जीव का औपाधिक मोह-राग-द्वेषरूप पर्यायों के साथ जो एकत्व परिणाम है सो केवल जीव-बंध है;
- और जीव तथा कर्मपुद्गल के परस्पर परिणाम के निमित्तमात्र से जो विशिष्टतर परस्पर अवगाह है सो उभय-बंध है । (अर्थात् जीव और कर्मपुद्गल एक दूसरे के परिणाम में निमित्तमात्र होवें, ऐसा, विशिष्टप्रकार का—खासप्रकार का, जो उनका एकक्षेत्रावगाह संबंध है सो वह पुद्गल-जीवात्मक बंध है) ॥१७७॥