GP:प्रवचनसार - गाथा 181 - तत्त्व-प्रदीपिका - हिंदी
From जैनकोष
प्रथम तो परिणाम दो प्रकार का है—परद्रव्यप्रवृत्त (परद्रव्य के प्रति प्रवर्तमान) और स्वद्रव्यप्रवृत्त । इनमें से परद्रव्यप्रवृत्तपरिणाम पर के द्वारा उपरक्त (पर के निमित्त से विकारी) होने से विशिष्ट परिणाम है और स्वद्रव्यप्रवृत्त परिणाम पर के द्वारा उपरक्त न होने से अविशिष्ट परिणाम है । उसमें विशिष्ट परिणाम के पूर्वोक्त दो भेद हैं—शुभपरिणाम और अशुभ परिणाम । उनमें पुण्यरूप पुद्गल के बंध का कारण होने से शुभपरिणाम पुण्य है और पापरूप पुद्गल के बंध का कारण होने से अशुभ परिणाम पाप है । अविशिष्ट परिणाम तो शुद्ध होने से एक है इसलिये उसके भेद नहीं हैं । वह (अविशिष्ट परिणाम) यथाकाल संसारदुःख के हेतुभूत कर्मपुद्गल के क्षय का कारण होने से संसारदुःख का हेतुभूत कर्मपुद्गल का क्षयस्वरूप मोक्ष ही है ।