GP:प्रवचनसार - गाथा 184 - अर्थ
From जैनकोष
[स्वभाव कुर्वन्] अपने भाव को करता हुआ [आत्मा] आत्मा [हि] वास्तव में [स्वकस्य भावस्य] अपने भाव का [कर्ता भवति] कर्ता है; [तु] परन्तु [पुद्गलद्रव्यमयानां सर्वभावानां] पुद्गलद्रव्यमय सर्व भावों का [कर्ता न] कर्ता नहीं है।