GP:प्रवचनसार - गाथा 186 - अर्थ
From जैनकोष
[सः] वह [इदानीं] अभी (संसारावस्था में) [द्रव्यजातस्य] द्रव्य से (आत्मद्रव्य से) उत्पन्न होने वाले [स्वकपरिणामस्य] (अशुद्ध) स्वपरिणाम का [कर्ता सन्] कर्ता होता हुआ [कर्मशुलभि:] कर्मरज से [आदीयते] ग्रहण किया जाता है और [कदाचित् विमुच्यते] कदाचित् छोड़ा जाता है । =