GP:प्रवचनसार - गाथा 187.1 - तात्पर्य-वृत्ति - हिंदी
From जैनकोष
[अणुभागो] अनुभाग -- फल देने सम्बन्धी शक्ति विशेष होती है -- ऐसा क्रिया का अध्याहार -- ग्रहण किया गया है । वह शक्ति विशेष कैसी होती है ? [तिव्वो] यह तीव्र प्रकृष्ट--परम अमृत समान होती है । इस-रूप वह किनकी होती है ? [सुहपयडीणं] साता वेदनीय आदि शुभ प्रकृतियों की शक्ति इस-रूप होती है । वह किस कारण इस-रूप होती है ? [विसोही] तीव्र धर्मानुराग-रूप विशुद्धि द्वारा साता-वेदनीय आदि शुभ प्रकृतियों की, परम अमृत समान फलदान शक्ति होती है । [असुहाण संकिलेसम्मि] असाता वेदनीय आदि अशुभ प्रकृतियों का मिथ्यात्वादि-रूप तीव्र संक्लेश होने पर तीव्र हालाहल विष के समान अनुभाग होता है । [विवरीदो दु जहण्णो] उससे विपरीत जघन्य भाग बन्ध गुड़ और नीम रूप होता है । जघन्य विशुद्धि और जघन्य संक्लेश से तथा मध्यम विशुद्धि और मध्यम संक्लेश से क्रमश: शुभ-अशुभ प्रकृतियों का खण्ड (खांड) और शक्कर-रूप तथा कांजीर और विषरूप (अनुभाग) होता है । इस- प्रकार का जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट-रूप अनुभाग किनका होता है ? [सव्वपयडीणं] मूल-उत्तर प्रकृतियों से रहित, निज परमानन्द एक स्वभाव लक्षण सभी प्रकार से उपादेयभूत परमात्म-द्रव्य से भिन्न, हेयभूत मूल-उत्तर प्रकृतियों का जघन्यादि-रूप अनुभाग है । इसप्रकार कर्मों की शक्तियों का स्वरूप जानना चाहिये ॥२००॥