GP:प्रवचनसार - गाथा 188 - तत्त्व-प्रदीपिका - हिंदी
From जैनकोष
जैसे जगत में वस्त्र सप्रदेश होने से लोध, फिटकरी आदि से कषायित होता है, जिससे वह मजीठादि के रंग से संबद्ध होता हुआ अकेला ही रंगा हुआ देखा जाता है, इसी प्रकार आत्मा भी सप्रदेश होने से यथाकाल मोह-राग-द्वेष के द्वारा कषायित होने से कर्मरज के द्वारा संश्लिष्ट होता हुआ अकेला ही बंध है; ऐसा देखना (मानना) चाहिये, क्योंकि निश्चय का विषय शुद्ध द्रव्य है ॥१८८॥
अब निश्चय और व्यवहार का अविरोध बतलाते हैं :-